
भारत में जब आधार जैसी डिजिटल पहचान सिस्टम लागू की गई थी, तब इसका मकसद हर नागरिक को एक ऐसी यूनिक आईडी देना था, जिससे वह सरकारी और निजी सेवाओं का लाभ कहीं से भी और कभी भी उठा सके। इसी कड़ी में यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI) आया, जिसने वित्तीय लेनदेन को सरल, तेज और सुरक्षित बना दिया। अब सरकार एक और बड़ा कदम उठाने जा रही है – डिजिटल एड्रेस सिस्टम (Digital Address System)।
यह नया सिस्टम हर पते को एक यूनिक डिजिटल पहचान देने की योजना है, जिससे देश के इंफ्रास्ट्रक्चर, लॉजिस्टिक्स और डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI) को और अधिक मजबूत और स्मार्ट बनाया जा सकेगा। इस सिस्टम को लेकर सरकार जिस गंभीरता से आगे बढ़ रही है, उससे यह स्पष्ट हो गया है कि यह भविष्य की एक आधारशिला बनने जा रही है।
डिजिटल एड्रेस सिस्टम क्या है और क्यों जरूरी है?
डिजिटल एड्रेस सिस्टम (DAS) एक ऐसा सिस्टम है जिसमें देश के हर रिहायशी, व्यावसायिक और औद्योगिक पते को एक डिजिटल पहचान मिलेगी। यह पहचान आधार की तरह यूनिक होगी, लेकिन व्यक्ति पर नहीं बल्कि स्थान पर आधारित होगी। यह पूरी योजना भारत के Digital Public Infrastructure का हिस्सा होगी।
इस समय भारत के पास कोई ऐसा समेकित डाटाबेस नहीं है जिसमें हर पते की सही जानकारी हो। नतीजतन, निजी कंपनियां पते से जुड़ी जानकारी को बिना अनुमति के इकट्ठा और साझा कर लेती हैं। DAS इस स्थिति को बदलने के लिए एक केंद्रीयकृत, सरकारी डाटाबेस बनाएगा, जहां पते की सभी जानकारी मौजूद होगी और किसी के द्वारा उसे साझा करने से पहले मालिक की अनुमति जरूरी होगी।
इस समय योजना की स्थिति क्या है?
डिजिटल एड्रेस सिस्टम को लागू करने के लिए डाक विभाग एक ढांचा तैयार कर रहा है। इस फ्रेमवर्क के तहत हर पते को एक यूनिक डिजिटलीकृत कोड यानी डिजिपिन (Digipin) मिलेगा, ठीक उसी तरह जैसे आधार और UPI नंबर होते हैं। हर पते के लिए यह डिजिपिन एक मानक प्रारूप में होगा, जिससे सिस्टम में एकरूपता बनी रहे।
बताया गया है कि प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) खुद इस योजना की निगरानी कर रहा है और योजना का ड्राफ्ट अगले कुछ दिनों में जनता की प्रतिक्रिया के लिए जारी किया जा सकता है। इस पर मिली प्रतिक्रियाओं के आधार पर नीति को अंतिम रूप देकर संसद के शीतकालीन सत्र में विधेयक लाने की योजना है।
भारत में इसकी जरूरत क्यों महसूस की गई?
देश में ई-कॉमर्स, फूड डिलीवरी, लॉजिस्टिक्स और कूरियर सेवाओं का तेजी से विस्तार हुआ है। परंतु, इन सेवाओं के लिए जरूरी एड्रेस डेटा एकीकृत और सटीक न होने के कारण कंपनियों को डिलीवरी में परेशानी होती है। उपयोगकर्ता जब किसी एप या वेबसाइट पर अपना पता डालता है, तो वह डेटा कई बार बिना अनुमति के दूसरी जगहों पर भी इस्तेमाल होता है।
इससे न केवल यूजर की निजता प्रभावित होती है, बल्कि भारत की अर्थव्यवस्था को भी नुकसान होता है। Economic Times की एक रिपोर्ट के अनुसार, गलत या अधूरी पते की जानकारी से भारत को हर साल 10-14 अरब डॉलर का नुकसान होता है, जो GDP का लगभग 0.5% है। डिजिटल एड्रेस सिस्टम इस नुकसान को रोकने में कारगर साबित हो सकता है।
डिजिटल एड्रेस सिस्टम कैसे काम करेगा?
डिजिटल एड्रेस सिस्टम के तहत हर पते को एक यूनिक डिजिटल कोड यानी डिजिपिन दिया जाएगा। यह डिजिपिन उस स्थान के भू-स्थानिक डेटा (geospatial data) पर आधारित होगा और सैटेलाइट मैपिंग की मदद से तय किया जाएगा। इस डेटा को बाद में व्यक्ति के आधार और UPI से भी जोड़ा जा सकता है, जिससे न केवल पते की, बल्कि व्यक्ति की डिजिटल पहचान और वित्तीय पहचान भी एकीकृत हो सकेगी।
इससे सरकारी योजनाओं की पहुंच दूर-दराज के इलाकों तक हो सकेगी और निजी कंपनियों को भी सही सेवा वितरण में आसानी होगी। साथ ही, यह सिस्टम पते की सुरक्षा और निजता भी सुनिश्चित करेगा।