
असम में बीजेपी सरकार ने फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल द्वारा “अवैध विदेशी” घोषित किए गए लोगों की पहचान और उन्हें वापस भेजने की प्रक्रिया को बेहद तेज़ कर दिया है। यह कार्रवाई खासकर भारत-बांग्लादेश सीमा के नो-मैन्स लैंड में इन व्यक्तियों को जबरन धकेलने के रूप में सामने आ रही है। मई के अंतिम सप्ताह में पश्चिमी और दक्षिणी असम से कम से कम 49 लोगों को कथित रूप से सीमा पार भेजा गया है, जिससे मानवाधिकार संगठनों और परिजनों में गहरी चिंता पैदा हुई है।
इस प्रक्रिया को लेकर सुप्रीम कोर्ट और गुवाहाटी हाई कोर्ट में याचिकाएं दायर की गई हैं। याचिकाकर्ताओं ने अपने परिजनों के ठिकाने की जानकारी मांगी है और इन पुश-बैक कार्रवाईयों पर तत्काल रोक लगाने की मांग की है। इस पूरे घटनाक्रम ने असम की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति में एक नया तनाव पैदा कर दिया है।
मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा का स्पष्ट रुख
असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने इन घटनाओं को पूरी तरह से कानूनसम्मत बताया है। उन्होंने कहा कि अब तक करीब 30,000 घोषित विदेशी “गायब” हैं और इस प्रक्रिया को तेज़ करना आवश्यक हो गया है। उनका कहना है कि जिन्हें विदेशी घोषित किया गया है और जिन्होंने कोर्ट में अपील नहीं की, उनके पास भारत में रहने का कोई अधिकार नहीं है।
मुख्यमंत्री ने यह भी बताया कि यदि किसी व्यक्ति ने अपील की है या न्यायपालिका से स्टे प्राप्त किया है, तो सरकार उसे वापस नहीं भेज रही। लेकिन जिन्हें ट्रिब्यूनल ने विदेशी घोषित किया और जिन्होंने कोई कानूनी कदम नहीं उठाया, उनके खिलाफ कार्रवाई सुनिश्चित है।
पुश-बैक कार्रवाई के मानवीय प्रभाव
सरकार की इस नीति के मानवीय पहलू भी सामने आने लगे हैं। कई परिवारों ने अपने परिजनों की गिरफ्तारी के बाद से उनकी कोई जानकारी न होने की शिकायत की है। कोर्ट ने राज्य सरकार से इस पर जवाब भी मांगा है। गोलपारा के ट्रांजिट कैंप से रिहा किए गए अबू बक्कर सिद्दिक और अकबर अली जैसे व्यक्तियों के परिजनों को यह आशंका है कि उन्हें गुपचुप ढंग से बांग्लादेश भेजा जा सकता है।
इसी तरह, एक युवक ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दावा किया कि उसकी मां मोनवारा बेवा को 24 मई को पुलिस ने उठा लिया और तब से उनका कोई अता-पता नहीं है। यह घटनाएं नागरिक स्वतंत्रता और पारिवारिक सुरक्षा के मुद्दे पर गहन सवाल खड़े करती हैं।
सीमा सुरक्षा और सामुदायिक भय
बढ़ते पुश-बैक अभियानों के बीच भारत-बांग्लादेश सीमा पर सुरक्षा कड़ी कर दी गई है। बीएसएफ और असम पुलिस की निगरानी तेज़ की गई है। हाल ही में, जलालपुर में स्थानीय नागरिकों ने करीब 30 संदिग्ध बांग्लादेशियों को पकड़ा, जो भारत में दिहाड़ी मजदूरी कर रहे थे और अब डर के कारण लौटने की कोशिश कर रहे थे।
यह भय का माहौल राज्य में अव्यवस्था का संकेत देता है, जहाँ प्रवासी नागरिकों की कानूनी स्थिति अस्पष्ट है और उन्हें कभी भी निर्वासन का सामना करना पड़ सकता है। इससे राज्य में सामाजिक सामंजस्य और मानवीय गरिमा दोनों पर गंभीर असर पड़ रहा है।