एक देश में किचन, दूसरे देश में बेडरूम! भारत का अनोखा गांव, क्या आपको पता है कहा है ये

लोंगवा गांव नागालैंड और म्यांमार की सीमा पर स्थित एक अनोखा गांव है, जहां लोग एक देश में खाना खाते हैं और दूसरे में सोते हैं। यहां वीजा-पासपोर्ट की जरूरत नहीं होती और स्थानीय लोग दोनों देशों की नागरिकता रखते हैं। कोन्याक जनजाति, राजा की 60 पत्नियां और हेड हंटिंग का इतिहास इस गांव को और भी खास बनाते हैं। लोंगवा अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी जाना जाता है।

By GyanOK

एक देश में किचन, दूसरे देश में बेडरूम! भारत का अनोखा गांव, क्या आपको पता है कहा है ये
Longwa Village

लोंगवा गांव (Longwa Village) एक ऐसा नाम है जो अपने आप में रहस्य, रोमांच और विरासत समेटे हुए है। यह गांव भारत-म्यांमार सीमा पर स्थित है और इसकी सबसे दिलचस्प बात यह है कि यहां के लोग एक देश में खाना खाते हैं और दूसरे देश में सोते हैं। यह बात जितनी अनोखी लगती है, उतनी ही सच्ची है। लोंगवा गांव नागालैंड के मोन जिले में स्थित है, जो राज्य की राजधानी कोहिमा से लगभग 389 किलोमीटर दूर है। यह गांव भारत के ईस्टर्न इंटरनेशनल बॉर्डर पर स्थित है और यहां रहने वाले कोन्याक (Konyak) जनजाति के लोग अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक विरासत के लिए जाने जाते हैं।

बॉर्डर के आर-पार बसी ज़िंदगी

लोंगवा गांव की सबसे खास बात यह है कि साल 1970-71 में भारत और म्यांमार के बीच खिंची गई सीमा रेखा (Border Line) ने इस गांव को दो हिस्सों में बांट दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि आज गांव का एक हिस्सा भारत में और दूसरा हिस्सा म्यांमार में है। गांव के कई घर ऐसे हैं जिनका एक कमरा भारत में है और दूसरा म्यांमार में। कुछ घरों की रसोई भारत में है और बेडरूम म्यांमार में। यहां के लोग बिना वीजा-पासपोर्ट के दोनों देशों के बीच आवाजाही करते हैं, जो दुनिया के किसी और हिस्से में संभव नहीं है।

दो देशों की नागरिकता, एक पहचान

लोंगवा के लोग एक खास पहचान रखते हैं, क्योंकि उन्हें तकनीकी रूप से भारत और म्यांमार दोनों की नागरिकता मिली हुई है। वे न केवल दोनों देशों में बिना किसी दस्तावेज के यात्रा कर सकते हैं, बल्कि खेती, व्यापार और पारिवारिक गतिविधियों में भी भाग ले सकते हैं। यही वजह है कि यहां वीजा-वीज़ा की कोई परेशानी नहीं है। लोंगवा गांव की यह विशेषता इसे दुनियाभर के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनाती है।

कोन्याक जनजाति और हेड हंटिंग का इतिहास

लोंगवा गांव कोन्याक जनजाति का घर है, जो अपने ऐतिहासिक परंपराओं और योद्धा संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। एक समय था जब इस समुदाय के लोग ‘हेड हंटर्स’ (Head Hunters) के नाम से जाने जाते थे। दुश्मनों के सिर काटकर उन्हें गांव लाने की परंपरा यहां की शक्ति और वीरता का प्रतीक मानी जाती थी। हालांकि 1940 के दशक में यह प्रथा खत्म कर दी गई, लेकिन इसके निशान आज भी गांव की सांस्कृतिक पहचान में देखे जा सकते हैं।

राजा और उनकी 60 पत्नियां

लोंगवा गांव की प्रशासनिक व्यवस्था भी उतनी ही रोचक है जितनी इसकी भौगोलिक स्थिति। यहां का मुखिया ‘द अंग’ (The Ang) कहलाता है, जो कोन्याक जनजाति का वंशानुगत राजा होता है। वर्तमान राजा की 60 पत्नियां हैं और उसका बेटा म्यांमार की सेना में है। राजा के अधीन 75 गांव आते हैं जो भारत और म्यांमार दोनों में फैले हुए हैं। ये गांव नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश और म्यांमार की सीमा में स्थित हैं, जिससे राजा की भूमिका और प्रभाव दोनों देशों में कायम है।

लोंगवा की प्राकृतिक सुंदरता और पर्यटन

लोंगवा गांव न केवल अपनी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है बल्कि इसकी प्राकृतिक सुंदरता भी लोगों को दीवाना बना देती है। चारों ओर फैले घने जंगल, ऊंचे पहाड़, नीली नदियां और शांत वातावरण इस जगह को किसी स्वर्ग से कम नहीं बनाते। यहां पर्यटक शिलाई झील, डोयांग नदी, नागालैंड साइंस सेंटर और हांगकांग मार्केट जैसी जगहों का आनंद ले सकते हैं। यह गांव एक आदर्श पर्यटन स्थल बन गया है जहां न केवल प्रकृति की गोद में आराम मिलता है बल्कि एक अद्भुत सांस्कृतिक अनुभव भी मिलता है।

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