
Apara Ekadashi 2025 Vrat का पर्व 23 मई 2025 को श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाया जा रहा है। यह दिन हिन्दू धर्म में अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है, जिसे भगवान विष्णु को समर्पित किया जाता है। इस एकादशी को अचला एकादशी भी कहा जाता है, और मान्यता है कि इस व्रत को रखने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। व्रतधारियों के लिए पारण की सही विधि और समय का पालन अत्यावश्यक होता है, क्योंकि थोड़ी सी भी चूक व्रत का फल निष्फल कर सकती है।
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पारण का सही समय और तिथि
अपरा एकादशी व्रत को लेकर भक्तों के बीच विशेष श्रद्धा होती है। इस वर्ष व्रत का पारण 24 मई 2025 को सुबह 5:26 बजे से लेकर 8:11 बजे तक किया जाना चाहिए। इस अवधि में व्रत का पारण न करने पर व्रत अधूरा माना जाता है। द्वादशी तिथि 24 मई को रात्रि 7:20 बजे समाप्त हो रही है, इसलिए पारण इसी दिन प्रातःकाल निश्चित समय के भीतर करना अनिवार्य है।
व्रत पारण की संपूर्ण विधि
पारण की विधि में सबसे पहले सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करना चाहिए और शुद्ध वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद सूर्य देव को अर्घ्य देने के बाद श्री गणेश का पूजन करें। फिर भगवान विष्णु की पूजा पीले फूल, चंदन, धूप, दीप और तुलसी दल के साथ करें। “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करते हुए विष्णु जी को सात्विक भोग अर्पित करें। अंत में तुलसी दल मुख में रखकर व्रत का पारण करें और ब्राह्मण को अन्न, वस्त्र और दक्षिणा का दान दें। यह सम्पूर्ण प्रक्रिया भक्त के जीवन में शुभता, धन, यश और मोक्ष की प्राप्ति सुनिश्चित करती है।
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क्या न करें व्रत पारण के समय
Apara Ekadashi Vrat के दौरान यह सुनिश्चित करें कि पारण हरि वासर में न किया जाए, क्योंकि हरि वासर के समय पारण वर्जित माना गया है। व्रत के प्रभाव को बनाए रखने के लिए तामसिक आहार, प्याज-लहसुन या मांसाहार से पूर्ण रूप से परहेज करना चाहिए। सात्विकता और शुद्धता इस दिन की आत्मा होती है, इसलिए घर की सफाई, मन की पवित्रता और संयम अत्यंत आवश्यक हैं।
अपरा एकादशी का आध्यात्मिक महत्व
इस एकादशी का महत्व यह है कि इसके प्रभाव से व्यक्ति पूर्व जन्मों के पापों से मुक्त हो जाता है। अपरा एकादशी के दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा करने से विशेष फल मिलता है। यही कारण है कि हजारों श्रद्धालु इस दिन उपवास रखते हैं और भगवान विष्णु की विशेष पूजा करते हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इस व्रत के प्रभाव से राजा महिष्मति ने भी अपने अपराधों से मुक्ति पाई थी। अतः यह व्रत आत्मशुद्धि और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।
दान-पुण्य और सात्विक आचरण का महत्व
इस दिन दान का विशेष महत्व होता है। अन्न, जल, वस्त्र और दक्षिणा का दान करने से व्रत का पुण्य कई गुना बढ़ जाता है। साथ ही किसी जरूरतमंद की मदद करना, जीवों पर दया करना और क्रोध या कटु वाणी से परहेज करना व्रत की पवित्रता को बढ़ाता है। व्रत रखने वाले व्यक्ति को इस दिन केवल फलाहार करना चाहिए और दिनभर भगवान विष्णु के भजन-कीर्तन में लीन रहना चाहिए।
तुलसी का प्रयोग क्यों है विशेष
एक और विशेष बात यह है कि इस दिन तुलसी का प्रयोग विशेष शुभ माना जाता है। भगवान विष्णु को अर्पित की गई तुलसी का सेवन करने से शरीर और मन दोनों की शुद्धि होती है। व्रतधारियों को चाहिए कि पारण करते समय तुलसी को भोजन में जरूर शामिल करें और मंत्रों के साथ आभार व्यक्त करें।
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