समय रहते नहीं किया ये काम तो सरकार ले लेगी आपकी प्रॉपर्टी, इसके बारे में किसी को खबर ही नहीं

बिना वसीयत के मृत्यु की स्थिति में भारत में संपत्ति का बंटवारा Hindu Succession Act 1956 के तहत होता है। इसमें पहले पत्नी, बेटे, बेटी और मां को प्राथमिकता दी जाती है। उनके बाद पिता, भाई-बहन और दूर के रिश्तेदार आते हैं। अगर कोई वारिस न हो, तो संपत्ति सरकार के पास चली जाती है। स्पष्ट वसीयत न होने से पारिवारिक विवाद की संभावना बढ़ जाती है।

By GyanOK

समय रहते नहीं किया ये काम तो सरकार ले लेगी आपकी प्रॉपर्टी, इसके बारे में किसी को खबर ही नहीं
Hindu Succession Act

भारत में प्रॉपर्टी से जुड़े विवादों की कोई कमी नहीं है, खासकर तब जब घर का मुखिया बिना वसीयत (Will) के दुनिया से चला जाता है। ऐसी स्थिति में संपत्ति (Property) पर अधिकार को लेकर परिवार में मतभेद और कानूनी लड़ाइयों की नौबत आ जाती है। यह लेख आपको बताएगा कि वसीयत न होने की स्थिति में भारतीय कानून—विशेषकर हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 (Hindu Succession Act 1956)—किस तरह संपत्ति के अधिकारों का निर्धारण करता है।

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956: संपत्ति बंटवारे की नींव

यदि व्यक्ति हिंदू, जैन, बौद्ध या सिख धर्म का अनुयायी है, और उसने वसीयत नहीं बनाई है, तो Hindu Succession Act 1956 लागू होता है। इस अधिनियम में यह स्पष्ट किया गया है कि मृत्यु के बाद बिना वसीयत छोड़े गए व्यक्ति की संपत्ति पर किसका दावा वैध होगा। इसमें उत्तराधिकारियों को तीन प्रमुख श्रेणियों में बांटा गया है—प्रथम श्रेणी, द्वितीय श्रेणी, और उसके बाद रिश्तेदार।

प्रथम श्रेणी के वारिस: प्राथमिक हकदार

इस श्रेणी में वे लोग आते हैं जिनका संपत्ति पर पहला अधिकार होता है। इसमें शामिल हैं:

  • पत्नी
  • बेटा
  • बेटी
  • मां
  • पहले से मृत बेटे या बेटी के बच्चे

यदि बेटे की पहले मृत्यु हो चुकी है, तो उसकी विधवा को बेटे की हिस्से की संपत्ति मिलती है। इस श्रेणी के सभी सदस्य संपत्ति में बराबर हिस्सेदार होते हैं।

दूसरी श्रेणी के वारिस: प्राथमिक वारिस न होने की स्थिति में अधिकार

अगर प्रथम श्रेणी में कोई भी वारिस जीवित नहीं है, तब संपत्ति दूसरी श्रेणी के वारिसों को मिलती है। इसमें पिता, भाई और बहन शामिल होते हैं। यह वह स्थिति होती है जहां विवाद की संभावना अधिक होती है, क्योंकि आमतौर पर इस श्रेणी के लोग दूर के रिश्तेदार होते हैं।

Agnates और Cognates: दूर के रिश्तेदारों की बारी

अगर पहली और दूसरी दोनों श्रेणियों में कोई वारिस मौजूद नहीं है, तो संपत्ति ‘Agnates’ और ‘Cognates’ के पास जा सकती है। Agnates वे होते हैं जो केवल पुरुष संबंधों से जुड़े होते हैं, जबकि Cognates वे होते हैं जो पुरुष या महिला दोनों संबंधों से जुड़ सकते हैं।

संपत्ति का अंतिम ठिकाना

यदि उपरोक्त किसी भी श्रेणी में कोई वारिस नहीं होता है, तो वह संपत्ति भारतीय सरकार के पास चली जाती है। इस प्रक्रिया को Escheat कहा जाता है। यह एक कानूनी व्यवस्था है जो संपत्ति के किसी भी वैध दावेदार की अनुपस्थिति में उसे राज्य के अधीन कर देती है।

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GyanOK

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