तोता पालने का शौक पड़ सकता है भारी, हो सकती है जेल और जुर्माना – जानिए क्या है कानून

अगर आप भी घर में 'मिट्ठू' बोलने वाले तोते को बड़े प्यार से पाल रहे हैं, तो हो जाइए सावधान! भारत में तोता पालना गैरकानूनी है और इस गलती के लिए आपको 7 साल की जेल और 1 लाख रुपये तक जुर्माना देना पड़ सकता है। जानिए क्या है वाइल्डलाइफ एक्ट का पूरा नियम और कैसे बचें मुसीबत से।

By GyanOK

अगर आप अपने घर में ‘मिट्ठू’ या ‘सीताराम’ जैसे शब्द बोलने वाले तोते को पाले हुए हैं, तो अब सतर्क हो जाइए। भारत में तोता पालने का शौक आपको भारी पड़ सकता है। वन्यजीव संरक्षण कानून के तहत यह गैरकानूनी है और पकड़े जाने पर आपको जेल तक हो सकती है। अलीगढ़ के डिस्ट्रिक्ट फॉरेस्ट ऑफिसर नवीन प्रकाश शक्या ने चेताया है कि तोते पालने को लेकर वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 के तहत सख्त नियम हैं और इनमें उल्लंघन करने पर कठोर सजा का प्रावधान है।

तोता पालने का शौक पड़ सकता है भारी, हो सकती है जेल और जुर्माना – जानिए क्या है कानून

तोता पालने पर क्या है सजा?

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के सेक्शन 9 और 12 के तहत तोता पालना अपराध की श्रेणी में आता है। अगर कोई व्यक्ति तोता पालते हुए पकड़ा जाता है तो उसे 3 से 7 साल तक की जेल और 1 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। वन विभाग ऐसे मामलों में तत्काल मुकदमा दर्ज करता है और कानूनी कार्रवाई करता है।

किन नस्लों के तोते पालना है अवैध?

अधिकारियों के अनुसार, आमतौर पर लोग इंडियन रिंगनेक, एलेक्जेंडर पैराकीट, मलाबर पैराकीट, और रेड ब्रेस्टेड तोते को पालते हैं। ये तोते बोलने में माहिर होते हैं और इनकी मौजूदगी घरेलू माहौल को मनोरंजक बना देती है। लेकिन यही प्रजातियां भारत के वनों में प्राकृतिक रूप से पाई जाती हैं और इन्हें पालना प्रतिबंधित है।

खरीदना-बेचना दोनों पर रोक

वन विभाग ने स्पष्ट किया है कि इन प्रजातियों के तोते न सिर्फ पालना गैरकानूनी है, बल्कि इनका खरीदना और बेचना भी प्रतिबंधित है। कई लोग अनजाने में बाजारों से ये तोते खरीद लेते हैं, लेकिन इससे उन्हें कानूनी संकट में फंसना पड़ सकता है।

कानून का उल्लंघन करने पर हो सकती है सख्त कार्रवाई

वन विभाग ने अपील की है कि कोई भी व्यक्ति यदि ऐसे पक्षियों को पाल रहा है, तो तुरंत उन्हें वन विभाग को सौंप दे। साथ ही लोगों को जागरूक किया जा रहा है कि जानवरों और पक्षियों की आज़ादी छीनना उनके जीवन के अधिकार का हनन है, और यह प्रकृति के संतुलन को भी बिगाड़ता है।

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