
ऑपरेशन सिंदूर 6-7 मई 2025 को भारतीय सेना द्वारा अंजाम दिया गया एक गुप्त लेकिन निर्णायक सैन्य अभियान था, जो भारत की सैन्य इतिहास में मील का पत्थर साबित हुआ। इस ऑपरेशन की योजना एक बहुस्तरीय रणनीति पर आधारित थी, जिसका उद्देश्य पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों को खत्म करना और उसकी सेना की क्षमताओं को पंगु करना था। भारत ने यह ऑपरेशन न केवल अपने आंतरिक सुरक्षा हितों की रक्षा के लिए किया, बल्कि यह भी दिखा दिया कि अब वह किसी भी प्रकार की ब्लैकमेलिंग या आतंकवाद के दबाव को स्वीकार नहीं करेगा।
चीन-तुर्किए-पाक गठबंधन की असफल रणनीति
पाकिस्तान ने इस बार अपने पुराने दोस्त चीन और रणनीतिक साझेदार तुर्किए पर जरूरत से ज़्यादा भरोसा किया। चीन ने रडार सिस्टम, सैटेलाइट डेटा और मिसाइल गाइडेंस में मदद दी, जबकि तुर्किए ने ड्रोन तकनीक और ऑटोमैटेड वारफेयर सपोर्ट। इस गठबंधन ने एक समन्वित रणनीति से भारत को चौंकाने की कोशिश की, लेकिन भारतीय इंटेलिजेंस एजेंसियों और तकनीकी निगरानी नेटवर्क ने हर कदम पर उन्हें मात दी। पाकिस्तान की यही अति-निर्भरता उसकी सबसे बड़ी भूल साबित हुई।
भारतीय सेना के हमले और तबाही का विवरण
भारतीय सेना ने जब जवाबी कार्रवाई शुरू की, तो उसकी सटीकता और तैयारी ने दुश्मन को चौंका दिया। पाकिस्तान के 11 महत्वपूर्ण एयरबेस पूरी तरह निष्क्रिय कर दिए गए। चीन के बनाए हथियार, मिसाइल डिफेंस सिस्टम और तुर्किए के उन्नत ड्रोन – सब का मलबा पाकिस्तानी ज़मीन पर बिखर गया। LOC पर स्थित उन पाकिस्तानी चौकियों को भी तबाह कर दिया गया, जहां से लगातार सीजफायर उल्लंघन हो रहा था।
सेना द्वारा जारी किए गए वीडियो और फोटो प्रमाण इस बात का संकेत हैं कि भारतीय फौज अब केवल बचाव नहीं, बल्कि सर्जिकल और निर्णायक प्रहार की नीति पर काम कर रही है।
मल्टी-फ्रंट और मल्टी-टेक्नोलॉजी वारफेयर में भारत की दक्षता
भारत ने इस ऑपरेशन में यह सिद्ध कर दिया कि वह एक साथ कई मोर्चों पर युद्ध लड़ सकता है। चाहे वह पारंपरिक सीमा युद्ध हो, साइबर हमले, अंतरिक्ष आधारित इंटरसेप्शन या इलेक्ट्रॉनिक जामिंग – हर तकनीक में भारतीय सेना सक्षम है। चीन और तुर्किए की तकनीकों को एक साथ नाकाम करना यह दर्शाता है कि भारतीय फौज अब सिर्फ ताकतवर नहीं, बल्कि रणनीतिक रूप से भी अजेय बन चुकी है।
शाहीन मिसाइल हमला और भारत की न्यूक्लियर डिफेंस क्षमता
पाकिस्तान की ओर से शाहीन बैलिस्टिक मिसाइल दागी गई, जिसमें न्यूक्लियर वारहेड ले जाने की क्षमता थी। इसे नूर खान एयरबेस से लॉन्च किया गया था। लेकिन भारत की अर्ली वार्निंग सिस्टम और स्पेस इंटरसेप्शन तकनीक ने इस मिसाइल को वायुमंडल में घुसने से पहले ही नष्ट कर दिया। यह न केवल तकनीकी सफलता थी, बल्कि रणनीतिक भी – क्योंकि इसने पाकिस्तान की वर्षों पुरानी न्यूक्लियर ब्लैकमेलिंग नीति को खत्म कर दिया।
ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय रक्षा प्रणालियों की भूमिका
इस ऑपरेशन में भारत की स्वदेशी तकनीकों और आयातित सिस्टम्स ने जबरदस्त तालमेल दिखाया। S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम (रूस से आयातित) ने हाई-रेंज मिसाइल अटैक को रोका, वहीं भारत में निर्मित आकाश डिफेंस सिस्टम ने मीडियम रेंज ड्रोन और क्रूज़ मिसाइल्स को निशाना बनाया। ब्रह्मोस मिसाइल, जो भारत-रूस का संयुक्त प्रयास है, ने पाकिस्तान के रणनीतिक ठिकानों को एक के बाद एक खत्म किया। यह आत्मनिर्भर भारत की रक्षा नीति का सटीक उदाहरण है।
पाकिस्तान के भीतर उठते असंतोष के स्वर
ऑपरेशन के बाद पाकिस्तान में राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व पर उंगलियां उठने लगीं। प्रसिद्ध स्कॉलर हसन निसार ने कहा कि पाकिस्तान की फौज ने देश को बर्बादी की ओर धकेला है। उनका तर्क था कि दोनों देशों की फौजें एक ही जड़ से निकली थीं, परंतु भारत ने अपने राजनीतिक नेतृत्व को ताकतवर और परिपक्व बनाया, जबकि पाकिस्तान में सेना ने लोकतंत्र को दबा कर रखा। यही अंतर भारत को विश्वस्तरीय सैन्य शक्ति बनाता है।
भारत की रक्षा नीति में आत्मनिर्भरता की भूमिका
भारत अब रक्षा आयात पर निर्भर नहीं रहना चाहता। ऑपरेशन सिंदूर इस रणनीति का पहला वास्तविक परीक्षण था, जिसमें स्वदेशी तकनीकों ने विदेशी तकनीकों से बेहतर प्रदर्शन किया। भारत ने 80% तक के डिफेंस सिस्टम खुद डिजाइन और निर्माण किए हैं, जबकि पाकिस्तान अभी भी 80% से अधिक हथियार चीन से आयात करता है। यह आत्मनिर्भरता भारत की रक्षा नीति का भविष्य है।
अंतर्राष्ट्रीय संदेश और भारत की वैश्विक छवि
इस ऑपरेशन ने एक वैश्विक संदेश दिया कि भारत अब केवल क्षेत्रीय शक्ति नहीं, बल्कि एक निर्णायक वैश्विक सैन्य ताकत बन चुका है। न केवल दक्षिण एशिया, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय सामरिक समीकरणों में भारत की भूमिका अब निर्णायक है। यह अभियान भारत की डिटरेंस स्ट्रैटेजी का स्पष्ट उदाहरण बना – जिसमें पहले हमले की अनुमति नहीं, लेकिन जवाब हर हाल में विनाशकारी होगा।