24 हजार प्राइवेट स्कूलों ने नहीं दी फीस बढ़ोतरी की जानकारी, पैरेंट्स का विरोध, कार्रवाई की मांग

मध्य प्रदेश में हजारों निजी स्कूलों ने फीस बढ़ोतरी तो कर दी, लेकिन नियमों के मुताबिक सरकार को कोई रिपोर्ट नहीं दी। 34 हजार में से सिर्फ 10 हजार स्कूलों ने ही पारदर्शिता दिखाई। अभिभावकों में नाराजगी, संगठनों ने जताई सख्त कार्रवाई की मांग। जानिए क्या है पूरा मामला और क्यों स्कूलों पर लग सकता है जुर्माना।

By GyanOK

मध्य प्रदेश में निजी स्कूलों की मनमानी एक बार फिर सामने आई है। राज्य के करीब 24,000 से अधिक प्राइवेट स्कूलों ने सत्र 2025-26 के लिए फीस संरचना में बदलाव की जानकारी सरकार को नहीं दी है। 34714 में से सिर्फ 10181 स्कूलों ने ही शिक्षा विभाग के निर्देशों का पालन करते हुए अपने वित्तीय रिकॉर्ड और फीस ढांचे की रिपोर्ट जमा कराई है। शेष स्कूलों ने या तो लापरवाही बरती है या जानबूझकर नियमों की अनदेखी की है।

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24 हजार प्राइवेट स्कूलों ने नहीं दी फीस बढ़ोतरी की जानकारी, पैरेंट्स का विरोध, कार्रवाई की मांग

सरकार की ढील, फिर भी नहीं सुधरे स्कूल

राज्य सरकार ने पारदर्शिता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से स्कूलों को अंतिम तिथि तक फीस और आय-व्यय का विवरण जमा कराने का निर्देश दिया था। इसके लिए डेडलाइन भी बढ़ाई गई थी, ताकि स्कूलों को पर्याप्त समय मिल सके। बावजूद इसके, बड़ी संख्या में स्कूलों ने जानकारी देना जरूरी नहीं समझा।

शिक्षा विभाग का उद्देश्य था कि फीस बढ़ोतरी को लेकर पारदर्शिता बनी रहे, और अभिभावकों पर बिना वजह आर्थिक बोझ न डाला जाए। लेकिन अब स्थिति यह है कि दो-तिहाई से ज्यादा स्कूलों ने इस प्रक्रिया को नजरअंदाज कर दिया है।

पैरेंट्स संगठन का विरोध, कार्रवाई की मांग

पैरेंट्स एसोसिएशन ने सरकार से मांग की है कि ऐसे स्कूलों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए जो नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। संगठन के जनरल सेक्रेटरी प्रबोध पंड्या ने कहा कि सरकार को इन स्कूलों पर जुर्माना लगाना चाहिए, और जिला स्तर पर कमेटियां बनाकर दस्तावेजों की जांच करनी चाहिए। यदि जरूरी हुआ तो स्कूलों के खिलाफ प्रदर्शन भी किया जाएगा।

बड़े शहर भी शामिल, हेल्पलाइन बनी मज़ाक

भोपाल, इंदौर, जबलपुर जैसे बड़े शहरों के स्कूल भी इस लापरवाही में शामिल हैं। वहीं, शिकायत दर्ज कराने के लिए बनाई गई सरकारी हेल्पलाइन को भी अभिभावकों ने सिर्फ औपचारिकता करार दिया है। पैरेंट्स का आरोप है कि उनकी शिकायतों को गंभीरता से नहीं लिया जाता।

स्कूलों की ओर से फीस बढ़ाने के जो कारण बताए गए हैं, उनमें संचालन लागत में इजाफा, इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार और स्टाफ सैलरी में बढ़ोतरी शामिल हैं। लेकिन शिक्षा विभाग का कहना है कि स्कूलों को यह साबित करना होगा कि ये कारण वाजिब हैं और शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए जरूरी हैं।

पैरेंट्स की दो टूक: जवाबदेही हो अनिवार्य

नियमों के मुताबिक, हर निजी स्कूल को अपनी सालाना आय और व्यय का विस्तृत ब्योरा रिकॉर्ड में रखना अनिवार्य है, जिसे अधिकृत अधिकारी कभी भी जांच सकते हैं। पैरेंट्स एसोसिएशन का कहना है कि सरकार को शिक्षा के निजी क्षेत्र में जवाबदेही और निगरानी मजबूत करनी चाहिए।

स्कूल फीस पर बने व्यापक डेटाबेस की मांग

संगठन की मांग है कि सरकार एक स्कूल फीस मॉनिटरिंग सिस्टम बनाए जिसमें हर स्कूल का फीस ढांचा, सालाना वृद्धि, कारण और अनुमोदन की स्थिति दर्ज हो। इससे न केवल फीस में पारदर्शिता आएगी, बल्कि मनमानी बढ़ोतरी पर भी लगाम लगेगी.

मध्य प्रदेश में निजी स्कूलों द्वारा फीस वृद्धि की जानकारी छिपाना एक बार फिर दर्शाता है कि नियंत्रण और पारदर्शिता के प्रयासों को लेकर गंभीरता की कमी है। सरकार को अब यह तय करना होगा कि वह केवल नोटिस जारी कर सीमित रहना चाहती है या वास्तव में जवाबदेही तय कर सख्त कदम उठाएगी। वरना हर साल नई क्लास के साथ अभिभावकों पर चढ़ता बोझ फिर से दोहराया जाएगा।

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