अगर पति से अलग रह रही पत्नी बच्चे की परवरिश के लिए नौकरी छोड़ती है तो उसे गुजारा भत्ता-Maintenance Allowance लेने का पूरा हक है, इस विषय पर दिल्ली हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाया है। इस फैसले के केंद्र में एक ऐसा मामला था जिसमें पत्नी, जो पहले सरकारी शिक्षिका थी, ने अपने नाबालिग बच्चे की देखभाल के लिए नौकरी छोड़ दी। कोर्ट ने इस त्याग को “स्वेच्छा से बेरोजगारी” नहीं माना बल्कि एक मजबूरी और मातृत्व के कर्तव्य का हिस्सा करार दिया।

यह फैसला 13 मई 2025 को आया, जब दिल्ली हाईकोर्ट ने एक पति को अपनी पत्नी को हर महीने 12,000 रुपए अंतरिम गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि पति की मासिक आय केवल 15,000 रुपए बताई गई। इसके बावजूद, अदालत ने यह स्पष्ट किया कि जब तक पारिवारिक अदालत पति की आयकर रिटर्न और बैंक स्टेटमेंट की पुष्टि नहीं कर लेती, तब तक उसे हर महीने की 10 तारीख तक अंतरिम भुगतान करना होगा।
पति-पत्नी के बीच की पृष्ठभूमि और विवाद
इस मामले की शुरुआत 2010 में होती है जब पति, जो पेशे से वकील है और पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करता रहा है, ने जनवरी 2016 में एक शिक्षिका से विवाह किया। शादी के मात्र 18 महीनों के भीतर, जुलाई 2017 में पत्नी ने अलग रहने का फैसला किया और तब से दोनों की राहें जुदा हो गईं।
पति ने कोर्ट में दावा किया कि उसकी पत्नी एक सरकारी शिक्षिका थी और वह हर महीने 40,000 से 45,000 रुपए कमाती थी। उसने यह भी आरोप लगाया कि पत्नी ने जानबूझकर नौकरी छोड़ी ताकि वह भरण-पोषण की राशि मांग सके। पति का यह भी तर्क था कि बच्चे की पढ़ाई और उससे जुड़े खर्चों की जिम्मेदारी काफी हद तक दिल्ली सरकार उठाती है।
पत्नी का पक्ष और बच्चों की प्राथमिकता
पत्नी के वकीलों ने इस दलील को सिरे से खारिज करते हुए बताया कि महिला ने अपनी नौकरी इसलिए छोड़ी क्योंकि उनके नाबालिग बच्चे की देखभाल करने वाला घर में कोई नहीं था। स्कूल की दूरी, आने-जाने में लगने वाला समय और नौकरी का स्थान – ये सभी कारक ऐसे थे कि महिला को मजबूरी में यह निर्णय लेना पड़ा।
साथ ही, पत्नी ने यह भी आरोप लगाया कि पति को कई संपत्तियों से किराए की आमदनी होती है जिसे उसने कोर्ट में जाहिर नहीं किया। ऐसे में पत्नी का आर्थिक सहयोग मांगना केवल नैतिक ही नहीं, बल्कि कानूनी रूप से भी जायज था।
कोर्ट की टिप्पणी और कानूनी दृष्टिकोण
कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट कहा कि अगर कोई महिला सिंगल पैरेंट की भूमिका निभा रही है और अपने बच्चे की देखभाल के लिए नौकरी छोड़ती है, तो यह निर्णय उसकी मर्जी से नहीं, बल्कि पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारी की वजह से लिया गया माना जाएगा। इसलिए, ऐसी महिला को गुजारा भत्ता मिलना उसका अधिकार है, और इसे लेकर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता।
यह निर्णय ना केवल महिला अधिकारों के संरक्षण की दिशा में अहम कदम है, बल्कि यह उन तमाम महिलाओं के लिए एक मिसाल भी है जो अकेले अपने बच्चों की परवरिश कर रही हैं और आर्थिक रूप से संघर्ष कर रही हैं।