नई दिल्ली | रक्षा डेस्क: भारतीय सेना में कई उच्च पद होते हैं, लेकिन कुछ पद ऐसे हैं जो देश की सुरक्षा और रणनीतिक निर्णयों में केंद्र बिंदु की भूमिका निभाते हैं। सीमा पर जब गोलियां चलती हैं या हालात तनावपूर्ण हो जाते हैं, तब एक नाम बार-बार सामने आता है — DGMO, यानी Director General of Military Operations। इस पद का नाम अक्सर समाचारों में तब आता है जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ता है या सेना कोई विशेष अभियान चलाती है। लेकिन आम लोगों को अब भी ये नहीं पता कि DGMO वास्तव में होता कौन है, उसका काम क्या होता है, और वह कैसे देश की सुरक्षा नीति में एक ‘साइलेंट पिलर’ की भूमिका निभाता है।

लेकिन सवाल उठता है — DGMO का असल काम क्या होता है? क्या वे युद्ध के दौरान ही सक्रिय रहते हैं? क्या उनकी भूमिका केवल सीमाओं तक सीमित होती है? आइए जानते हैं DGMO की पूरी जिम्मेदारी, ताकत और पद की अहमियत से जुड़ी सभी बातें।
DGMO का इतिहास और विकास
DGMO का पद भारतीय सेना में 1965 भारत-पाक युद्ध के बाद औपचारिक रूप से मजबूत किया गया था। युद्ध के अनुभवों के बाद भारत को एक ऐसे उच्च सैन्य अधिकारी की जरूरत महसूस हुई जो सभी ऑपरेशनल गतिविधियों को एक केंद्रीय कमान से संचालित कर सके। इसके बाद ही DGMO का पद अस्तित्व में आया और इसे लेफ्टिनेंट जनरल रैंक के अधिकारी को सौंपा गया।
DGMO: पद का मतलब और इसकी संरचना
DGMO का फुल फॉर्म है Director General of Military Operations, जिसे हिंदी में सैन्य संचालन महानिदेशक कहा जाता है। यह पद भारतीय सेना के मुख्यालय, साउथ ब्लॉक, नई दिल्ली में स्थित होता है और इसकी जिम्मेदारी देश की संपूर्ण थल सेना के संचालनात्मक कार्यों की निगरानी और योजना बनाने की होती है।
DGMO का पद लेफ्टिनेंट जनरल रैंक के अधिकारी को दिया जाता है, जो सेना प्रमुख (COAS) को सीधे रिपोर्ट करता है और रक्षा मंत्रालय के साथ समन्वय में काम करता है।
क्या होता है DGMO का काम?
1. सैन्य अभियानों की योजना और निगरानी
DGMO देशभर में हो रहे सभी सैन्य अभियानों की योजना तैयार करते हैं। इसमें सीमा सुरक्षा, आतंकवाद विरोधी अभियान, युद्ध की तैयारी, और आपातकालीन सैन्य कार्रवाई शामिल होती हैं।
2. सीमा पर तनाव की स्थिति में संपर्क अधिकारी
भारत-पाकिस्तान या भारत-चीन जैसी संवेदनशील सीमाओं पर अगर स्थिति तनावपूर्ण हो जाए, तो DGMO दोनों देशों के बीच हॉटलाइन कम्युनिकेशन के ज़रिए संपर्क स्थापित करते हैं। वे यह सुनिश्चित करते हैं कि स्थिति नियंत्रण में रहे और किसी भी सीजफायर उल्लंघन का जवाब संतुलन के साथ दिया जाए।
3. संयुक्त सैन्य समन्वय
DGMO नौसेना और वायुसेना के साथ मिलकर काम करते हैं ताकि सैन्य अभियानों में कोई अंतर-सेवा समन्वय की कमी न हो। इसके अलावा, वे रक्षा मंत्रालय और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के कार्यालय के साथ भी लगातार संपर्क में रहते हैं।
4. शांति और युद्धकालीन दोनों स्थितियों में भूमिका
यह केवल युद्ध के समय सक्रिय रहने वाला पद नहीं है। DGMO शांति काल में भी सभी अभ्यासों, युद्धाभ्यासों, रणनीतिक बदलावों और सैन्य तैनाती की योजना बनाते हैं।
DGMO की भूमिका कब दिखाई दी?
- 2021 में भारत-पाकिस्तान सीजफायर समझौता: DGMO स्तर की बातचीत से ही दोनों देशों के बीच युद्धविराम का पुनः पालन सुनिश्चित किया गया था।
- सर्जिकल स्ट्राइक (2016): इस सैन्य अभियान की घोषणा और मीडिया को ब्रीफिंग DGMO द्वारा ही की गई थी, जिससे इस पद की संवेदनशीलता और भूमिका का पता चलता है।
वर्तमान DGMO कौन हैं?
वर्तमान में लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई भारतीय सेना के DGMO हैं। उन्होंने 25 अक्टूबर 2024 को इस पद की जिम्मेदारी संभाली थी। वे सेना की गुप्त रणनीतियों, संचालन और सीमाओं पर होने वाले फैसलों में केंद्र में रहते हैं।
DGMO की ताकत और सीमाएं
- ✔️ ताकत:
- संपूर्ण सैन्य रणनीति पर नियंत्रण
- सीमा सुरक्षा और आपसी वार्ता में पहली पंक्ति की भूमिका
- तीनों सेनाओं के बीच तालमेल
- ❌ सीमाएं:
- कोई व्यक्तिगत निर्णय नहीं, सबकुछ सामूहिक निर्णय प्रणाली से होता है
- राजनीतिक नीति के तहत काम, स्वतंत्र निर्णय की गुंजाइश सीमित
कैसे होता है DGMO के बीच संवाद?
भारत और पाकिस्तान के DGMO हर सप्ताह हॉटलाइन कॉल पर बात करते हैं। इसके अलावा, जरूरत पड़ने पर फ्लैग मीटिंग, स्पेशल कॉन्फ्रेंस कॉल, और राजनयिक माध्यमों से भी बातचीत होती है। 2021 में दोनों देशों के DGMO ने एक साथ सीजफायर एग्रीमेंट को रिन्यू किया था, जिससे LOC पर शांति बहाल हुई।
DGMO और Army Chief में क्या अंतर है?
- Army Chief भारत की पूरी थल सेना का प्रमुख होता है — वह नीति बनाता है और दिशा देता है।
- DGMO उसका संचालनात्मक अधिकारी होता है — वह नीतियों को अमल में लाने का काम करता है, विशेषकर सीमा पर।
क्यों DGMO का पद इतना महत्वपूर्ण है?
- रक्षा नीति का क्रियान्वयन इन्हीं के ज़रिए होता है
- देश की सीमाओं की निगरानी में सर्वोच्च स्तर का समन्वय
- हॉटलाइन कम्युनिकेशन के ज़रिए तनाव कम करने की जिम्मेदारी
- किसी भी युद्ध की स्थिति में ऑपरेशनल मास्टरमाइंड
DGMO भारतीय सेना का वह स्तंभ है जो सामने नहीं आता, लेकिन हर ऑपरेशन में सबसे आगे होता है। उसकी रणनीति, त्वरित निर्णय और संवाद क्षमता ही सीमा पर शांति और सटीक सैन्य प्रतिक्रिया का संतुलन बनाए रखती है। यह पद युद्ध और शांति दोनों के समय में उतना ही आवश्यक है जितना सेना प्रमुख।