
भारत में हर दिन जमीन-जायदाद के हजारों केस कोर्ट तक जाते है. हाल ही में एक मामला सामने आया है, जहां एक भांजे ने अपने मामा की जमीन पर अपना हक बताया. तो चलिए जानते है इस मामले में हाईकोर्ट ने क्या फैसला किया.
मामा की संपत्ति में भांजे का अधिकार
भारतीय उत्तराधिकार कानून के तहत मामा की प्रॉपर्टी पर भांजे का कोई हक नहीं होता है. हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के मुताबिक, मामा की प्रॉपर्टी पर सबसे पहले उनकी पत्नी, बेटे, बेटी या माता-पिता का हल होता है. यदि इनमें से कोई भी नहीं है, तो संपत्ति करीबी रिश्तेदारों को दी जाती है. भांजे को प्रथम श्रेणी का वारिस नहीं माना जाता है, इसलिए उन्हें मामा की संपत्ति में कोई हिस्सा नहीं मिलता है.
क्या था पूरा मामला ?
भांजे का कहना है कि उसमे अपने मामा की बहुत सेवा की थी और वह उनके साथ बहुत समय से रह रहा था. उसका दावा है कि मामा ने अपनी जमीन उसे देने की बात कही थी. लेकिन कोर्ट में मौखिक वसीयत को साबित करना बहुत मुश्किल होता है, क्योंकि इस काम के लिए पक्के साबित होने चाहिए. सबूत न होने कारण हाईकोर्ट ने भांजे के दावे को खारिज कर लिया.
कोर्ट ने क्या कहा ?
हाईकोर्ट ने बताया है कि मामा की संपत्ति का वारिस वही होगा जो कानून के हिसाब से उत्तराधिकारी माना जाएगा. अगर मामा ने कोई पंजीकृत वसीयत या गिफ्ट डीड हीं बनाई है, तो भांजे को संपत्ति का कोई हक़ नहीं मिलेगा.