डूब रहे हैं दुनियाभर के ये 28 बड़े शहर! सैटेलाइट स्टडी में खुलासा

एक नई सैटेलाइट स्टडी ने खलबली मचा दी है अमेरिका के बड़े-बड़े शहर जैसे न्यूयॉर्क, शिकागो और डलास हर साल जमीन में धंसते जा रहे हैं। वजह है इंसानी लापरवाही और बढ़ता भूजल दोहन। अगर अभी नहीं चेते, तो आने वाले सालों में ये शहर पानी में समा सकते हैं।

By GyanOK

ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज जैसे शब्द अब सिर्फ बहस का मुद्दा नहीं रह गए हैं, बल्कि ये धरती पर धीरे-धीरे असर दिखाने लगे हैं। अमेरिका में सामने आई एक चौंकाने वाली स्टडी ने साफ किया है कि वहां के 28 बड़े शहरों की जमीन धीरे-धीरे नीचे धंस रही है यानी वो शहर धीरे-धीरे पानी में समा रहे हैं।

डूब रहे हैं दुनियाभर के ये 28 बड़े शहर! सैटेलाइट स्टडी में खुलासा
डूब रहे हैं दुनियाभर के ये 28 बड़े शहर! सैटेलाइट स्टडी में खुलासा

यह खुलासा किया है वर्जीनिया टेक यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने, जिन्होंने सैटेलाइट डेटा और हाई-रेजॉल्यूशन रडार तकनीक का इस्तेमाल कर यह अध्ययन किया। रिपोर्ट के मुताबिक, न्यूयॉर्क, शिकागो, डलास और डेनवर जैसे बड़े शहर हर साल औसतन 2mm से 10mm तक नीचे धंस रहे हैं। यह प्रक्रिया भले ही धीमी हो, लेकिन लगातार जारी है और इसके गंभीर नतीजे सामने आ सकते हैं।

हर शहर में ज़मीन धंसने के लक्षण

रिपोर्ट में बताया गया है कि जिन 28 शहरों की जांच की गई, उनमें से हर एक में कम से कम 20 प्रतिशत इलाका डूब रहा है। सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि इनमें से 25 शहरों में 65 प्रतिशत से ज्यादा क्षेत्र पर जमीन नीचे जा रही है। अगर ऐसा ही चलता रहा, तो इन शहरों में बाढ़ का खतरा बढ़ जाएगा और सड़कों, इमारतों और पुलों जैसी इंफ्रास्ट्रक्चर सुविधाएं तबाह हो सकती हैं।

ह्यूस्टन की हालत सबसे गंभीर

टेक्सास के शहरों में ये समस्या सबसे ज्यादा देखने को मिली है, और खासकर ह्यूस्टन शहर की हालत काफी नाजुक बताई गई है। रिपोर्ट के अनुसार, ह्यूस्टन का 40 प्रतिशत हिस्सा हर साल 5mm से ज्यादा धंस रहा है, जबकि इसका 12 प्रतिशत इलाका सालाना 10mm से भी ज्यादा दर से नीचे जा रहा है।

भूजल दोहन बना सबसे बड़ा कारण

शोधकर्ताओं का कहना है कि लगभग 80 प्रतिशत शहरी जमीन धंसाव का कारण अत्यधिक भूजल निकासी है। जैसे-जैसे शहरों की जनसंख्या बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे पानी की मांग भी बढ़ रही है। इससे जमीन के अंदर का पानी तेजी से निकाला जा रहा है, जो मिट्टी को अंदर से कमजोर कर रहा है। इसके अलावा प्राकृतिक भूगर्भीय गतिविधियां भी इसमें अपनी भूमिका निभा रही हैं।

वर्जीनिया टेक में एसोसिएट प्रोफेसर मनूचेहर शिरज़ाई ने चेतावनी दी है कि यह खतरा बहुत ही धीमे तरीके से आता है और इसलिए अक्सर इसे नजरअंदाज कर दिया जाता है। लेकिन अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो जब तक इसका असर समझ में आएगा, तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।

समाधान क्या है?

रिपोर्ट के मुताबिक, यह प्रक्रिया पूरी तरह से रोकी नहीं जा सकती, लेकिन इसके असर को कम किया जा सकता है। इसके लिए जरूरी है कि सैटेलाइट से लगातार निगरानी रखी जाए, भूजल प्रबंधन के तरीके बदले जाएं और इंफ्रास्ट्रक्चर को और मजबूत बनाया जाए। इसके साथ ही कानूनी स्तर पर भी सख्त कदम उठाने होंगे, ताकि आगे चलकर किसी बड़े नुकसान से बचा जा सके।

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