
तेलंगाना हाई कोर्ट ने एक बड़ा फैसला लेते हुए कहा कि मुस्लिम महिलाओं को अपने पति के इजाजत के बिना ‘खुला’ (Khula) के माध्यम से तलाक़ लेने का पूरा अधिकार है. वहीं मुस्लिम पुरुषों के पास अपनी पत्नी की खुला की मांग को ठुकराने का कोई हक नहीं है. किसी भी अदालत की भूमिका केवल तलाक को मान्यता देने तक सीमित है, जिसके बाद यह नियम दोनों पक्षों पर लागू होते है. ‘खुला’ वह प्रक्रिया है जिसमें एक पत्नी, दहेज या मेहर जैसी चीजें छोड़कर, खुद अपने पति से तलाक ले सकती है.
कोर्ट ने साफ कहा कि एक मुस्लिम महिला को ‘खुला’ (तलाक) मांगने का अधिकार है. इसके लिए महिला को कोई खास वजह नहीं बतानी होगी और न ही पति की मंजरी लेनी होगी.
कोर्ट ने पति की याचिका खारिज की
तेलंगाना हाई कोर्ट ने एक व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी है. इस व्यक्ति ने कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमे उसके तलाक के प्रमाण पत्र को अमान्य घोषित करने की मांग को ठुकराया गया. उस व्यक्ति की पत्नी ने ‘सादा-ए-हक शरई काउंसिल’ से यह तलाक प्रमाण पत्र प्राप्त किया था और पति इसे रद्द करवाना चाहता था अब हाई कोर्ट ने भी इसे खारिज कर दिया है.
खुला लेना महिला का अधिकार
इस्लामिक धर्म में अभी तक खुला यानी तलाक लेने के लिए पति और पत्नी दोनों की सहमति होनी जरूरी थी और पत्नी को शादी के बाद दिया जाने वाला धन वापिस लौटना पड़ता था. ऐसे कई मामलों को आपसी समझौते से सुलझाए जाते है. अब कोर्ट के नए आदेश के बाद खुला का फैसला लेना पत्नी की इच्छा पर निर्भर होगा.
क्या था मामला
एक विवाहिता जोड़े 2012 में शादी में बंधन में बंधे और पत्नी लगभग 5 साल अपने ससुराल में रही. बाद में उसने पति पर शारीरिक हिंसा का आरोप लगाते हुए ‘खुला’ (तलाक) की मांग की, जिसे पति ने इनकार कर लिया. उसके बाद अक्टूबर 2020 में पत्नी ने एक इस्लामी काउंसिल से संपर्क किया, जिसमें मुफ्ती, प्रोफेसर और इमाम शामिल थे. काउंसिल ने पति को समझौते के लिए तीन बार बुलाया, लेकिन उसने पेश होने से मना कर दिया.